सुमिरन करते-करते जीव ऐसी ऊंची अवस्था में पहुंच जाता है कि जीहवा से सुमिरन करने की बजाय मन से सुमिरन करने लगता है इस तरह मन में कोई दूसरा विचार नहीं रहता केवल सिमरन ही बाकी रह जाता है फिर यतन करने की बजाय सुमिरन सहज रूप में अपने आप चलता है यही सुमिरन की पूर्णता है इस तरह सूरत के पूरी तरह एकाग्र होने पर साधक नाम से जुड़ने के काबिल बन जाता है.
हजूर स्वामी जी महाराज जी के अनमोल वचन अगर नाम' की दौलत लेनी है, तो सबसे पहले 'सतगुरु' का सत्संग सुनो बिना सत्संग के समझ नहीं आती, और अंदर चढ़कर पर्दा खोलो। सारी गलतियां, सारे भ्रम, सारी गफलत, सत्संग से दूर हो जाती है बिना सत्संग अंदर की आंख नहीं खुलती। जब सद्गुरु की शरण में आ जाओ, फिर अपने आप को उसके ऊपर कुर्बान कर दो, यानी अपने आप को उसके हवाले करके भजन सीमरन करना ही पड़ेगा और सतगुरु किसी को तकलीफ नहीं देता। वह वही हुक्म देगा, जो इसके फायदे के लिए होगा माँ नहीं चाहती, कि बीमार बच्चे को मिठाई दी जाए। हम बीमार हैं। वह चीज देगा, जो हमारे फायदे की होगी और हम क्या करते हैं! अगर लड़का मर गया, तो छोड़ो गुरु को! अगर मुकदमा हो गया, तो छोड़ो गुरु को हम सब कुछ धुर दरगाह से लिखा कर लाए हैं। वह न बढ़ेगा और नहीं घटेगा सो हमें चाहिए कि जो कुछ लिखा कर लाए हैं, उसको प्रेम प्यार से भोग लें ओथे अमला ते होनगे निवेडे किसे ने तेरी जात नहीं पुछनी.
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