नियमित रूप से सत्संग में आने वाले एक व्यक्ति ने सत्संग मे आना अचानक बंद कर दिया। जब कुछ दिन बीत गए तो साथ के एक बुजुर्ग ने उसके घर जाने की सोची। उस शाम बहुत सर्दी थी।
कुछ देर बाद बुजुर्ग ने चिमटा उठाया और बड़ी सावधानी से एक बड़ा सा दहकता-चमकता अंगारा अँगीठी में से निकाला और उसे एक तरफ रख दिया। इसके बाद वह फिर कुर्सी पर आराम से बैठ गया, लेकिन बोला कुछ नहीं।
वह बुजुर्ग यह सब बस देखता रहा। उस अकेले अंगारे की चमक-दमक धीरे-धीरे कम होती चली गई और जल्दी ही वह बुझा-बुझा और ठंडा सा हो गया। बुजुर्ग के आने के बाद से अभिवादन के अलावा किसी ने भी एक शब्द तक नहीं बोला था।
बुजुर्ग ने चलने से पहले वह ठंडा और बुझा-बुझा कोयला उठाया और वापस आग में फेंक दिया, जिससे वह तुरंत ही आस-पास के जलते कोयलों के कारण रोशनी और गर्मी से फिर चमकने-दहकने लगा।
बुजुर्ग चलने के लिए जैसे ही उठा तो वह मेज़बान व्यक्ति बोला, “आपके आने का बहुत-बहुत धन्यवाद सर, विशेष रूप से इस अंगारे वाले उपदेश के लिए। मैं अब आगे से हर सत्संग में आया करूँगा, कभी मिस नहीं करूगा।” सत्संग परिवार से सदैव जुड़ा रहूंगा।
मनुष्य जीवन का सार भगवद्भक्ति है और भक्ति का मूल आधार सत्संग है। सत्संग सर्वोच्च चेतना प्रदान करता है। सत्संग जीवन को देखने का सही दृष्टिकोण प्रदान करता है। सत्संग ही मानव जीवन को सर्वोत्तम सदगति प्रदान करता है । सत्संग का अभाव मतलब मोह और भ्रम का विस्तार है ।
सत्संग का स्थान जीवन के अन्य कार्यों के बाद एडजस्ट करने वाला विषय नहीं है, अपितु सत्संग को एक विशेष महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है जिसके अनुसार अन्य कार्यों को एडजस्ट किया जाना चाहिए अतएव सत्संग से बढकर कुछ भी नहीं है।"
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