बहुत समय पहले की बात है, एक संत हुआ करते थे। उनकी भक्ति ऐसी थी कि वो अपनी धुन में इतने मस्त हो जाते थे और उनको कुछ होश नहीं रहता था। उनकी अदा और चाल इतनी मस्तानी हो
जाती थी। वो जहाँ जाते, देखने वालों की भीड़ लग जाती थी। और उनके दर्शन के लिए लोग जगह-जगह से पहुँच आते थे। उनके चेहरे पर चमक साफ दिखाई देती थी वो संत रोज सुबह चार बजे उठकर ईश्वर का नाम लेते हुए घूमने निकल जाते थे।एक दिन वो रोज की तरह अपने मस्ती में मस्त होकर झूमते हुए जा रहे थे। रास्ते में उनकी नज़र एक भगवान के दूत पर पड़ी उस दूत के हाथ में एक डायरी थी।
संत ने दूत को रोककर पूछा आप यहाँ क्या कर रहे हैं, और ये डायरी में क्या है ? भगवान के दूत ने जवाब दिया कि इसमें उन लोगों के नाम है जो उन्हें को याद करते हैं। यह सुनकर संत की इच्छा हुई कि उसमें उनका नाम है या नहीं, उन्होंने पुछ ही लिया कि, क्या मेरा नाम है इस डायरी में ?
दूत ने कहा आप ही देख लो और डायरी संत को दे दी। संत ने डायरी खोलकर देखी तो उनका नाम कही नहीं था। इस पर संत थोड़ा मुस्कराये और फिर वह अपनी मस्त चाल से भगवान को याद करते हुए चले गये।
दूसरे दिन फिर वही दूत वापस दिखाई दिये पर इस बार संत ने ध्यान नहीं दिया और अपनी मस्ती में चलते रहे। दूत ने उनसे ने कहा आज नहीं देखोगे डायरी। तो संत मुस्कुरा दिए और कहा, दिखा दो।
जैसे ही डायरी खोलकर देखा तो, सबसे ऊपर उन्ही संत का नाम था। इस पर संत हँस कर बोले क्या भगवान के यहाँ पर भी दो-दो डायरी हैं क्या ? मेरा नाम कल तो था नहीं और आज सबसे ऊपर है।
इस पर दूत ने कहा की आप ने जो कल डायरी देखी थी, वो उनकी थी जो लोग ईश्वर से प्यार करते हैं। आज ये डायरी में उन लोगों के नाम है, जिनसे ईश्वर खुद प्यार करते हैं।
बस इतना सुनना था कि वो संत दहाड़ मारकर रोने लगे, और रोते हुए ये कहते रहे हे ईश्वर यदि मैं कल तुझ पर जरा सा भी निराश हो जाता तो मेरा नाम कही नहीं होता। पर मेरे जरा से सब्र पर तुमने मुझे इतना बड़ा ईनाम दे दिया। तुम सच में बहुत दयालु हो तुमसे बड़ा प्यार करने वाला कोई नहीं और बार-बार रोते रहे।
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