दुनिया की शक्लों और पदार्थों से कौन प्यार किए बैठा है वह हमारा मन है। इसलिए अगर आत्मा और परमात्मा के दरमियान कोई रुकावट और पर्दा है तो वह केवल हमारे मन का पर्दा है।
गुरु नानक साहिब अपनी वाणी में लिखते हैं "मन जीते जग जीत" अगर हम अपने मन को जीत लेते हैं तो सारी दुनिया के बनाने वाले को ही जीत लेते हैं दुनिया में अगर कोई हमारा दुश्मन है तो सिर्फ हमारा मन ही है ।
यह कभी किसी को अपना बनाता है तो किसी को बेगाना समझता है . अच्छी तरह विचार करके देखें तो पता चलता है कि यह है सिर्फ हमारा मन ही है जिसके ताबे होकर कौम-कौम की दुश्मन है मजब मजब का दुश्मन है।
एक देश दूसरे देश को तबाह करना चाहता है ,भाई भाई को देखना नहीं चाहता और लोग हमेशा एक दूसरे के गले काटने की तरकीबें और उपाय सोचते रहते हैं यह सब कुछ हमारा मन ही हमसे करवा रहा है .
जब तक हम मन को अपने वश में नहीं करते हम वापस जाकर परमात्मा से मिलने के काबिल कैसे हो सकते हैं । मन को वश में करने का क्या मतलब है ? जिस प्रकार हमारी आत्मा उस परमात्मा का अंश है इसी प्रकार हमारा मन भी कोई छोटी चीज नहीं है यह भी ब्रह्मा का अंश है. त्रिकुटी का रहने वाला है लेकिन यहां माया के जाल में फंसकर अपने आप को भूल गया है. आत्मा सत्पुरुष की अंश है सचखंड की रहने वाली है । यहां आकर इसने भी मन का साथ लिया हुआ है। यानी आत्मा और मन की गांठ बंधी हुई है ।
जब तक आत्मा मन का साथ नहीं छोड़ती, ना उसे कभी अपने आप का पता चल सकता है और ना ही कभी वह अपने असल या मूल से मिलने के काबिल हो सकती है । हमें जो भी कोशिश करनी है यह मन और आत्मा की गांठ खोलने की करनी है. इसलिए सुकरात ने कहा अपने आप को पहचानो, सिमरन भजन करो , भजन - सिमरन ही एकमात्र जरिया है मन और आत्मा की गांठ खोलने का.
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