Friday 27 March 2020

091 - क्या वो सिमरन कर रहा है ?

सतगुरु का नूर और उनकी ताक़त अथाह और अंनत है । लेकिन अगर हम उनके नूर को देख नहीं पाते तो इसका कारण है कि हम उन्हें मनुष्य रूप समझते हैं । हीरे की असली क़ीमत जौहरी ही जानता है, केवल माँ ही

बच्चे के प्रति अपने प्यार को जानती है और केवल किसान ही जानता है कि उसकी फ़सल कितनी कीमती है ।

इसी तरह केवल वे लोग ही सतगुरु के दर्शन की अहमियत समझ सकते हैं जो भजन-सिमरन करते हैं

रूह जिसे नाम मिला है शरीर छोड़ती है तब गुरू और काल में वकालत होती है काल कहता है - आपकी रूह ने भजन किया है पर मन से नहीं किया, सतगुर कहते हैं मन से मेरा कोई मतलब नहीं वो तो तेरा है, मुझे मेरी रूह से मतलब है उसने मेरा हुक्म माना है, सतगुर के हुक्म के पीछे राज़ होता है इसिलिए कहते हैं मन लगे ना लगे बैठो सिमरन करो.

जब भी खाली वक़्त मिले  - हर दो-पांच-दस-बीस-पचास  मिनट बाद मन से पुछें .

क्या वो सिमरन कर रहा है ?

हज़रत सुल्तान बाहू जी ने बहुत सुंदर तरीके से कलमे  (नाम)  की चार विशेषताओं के बारे में समझाया है :

पहली यह कि वह बिना पढ़े पढ़ा जा सकता है, यानी उसका ज़ुबान से कोई वास्ता नहीं है।

दूसरी   यह कि वह बिना सुने सुना जा सकता है, यानी उसका इन बाहरी कानो से भी कोई वास्ता नहीं है।

तीसरी यह कि वह कलमा बिना देखे भी दिखाई देता है, यानी उसको देखना बाहरी आंखों का काम नहीं.

चौथी - यह कि कलमें में लीन हो जाने पर भक्त को परमात्मा न केवल अपने अंदर, बल्कि दुनिया की हर वस्तु में दिखाई देने लगता है  भाव यह है कि अंदर जाओ खुद में ढूंढो क्युंकि जो भी मिलेगा अंदर से ही मिलेगा।
बस हमे अभ्यास जारी रखना है।

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