ही हम उसके बताए हुए मार्ग पर चल सकते है।"
अंनत जन्मों के शुभ कर्मों और परमात्मा की दया मेहर से हमें देहधारी सतगुरु की संगति प्राप्त होती है। सतगुरु हमारे जन्म से ही हमारे अंग-संग रहता है। सतगुरु हमारा सच्चा साथी है। जब भी हम पर दुख और निराशा के बादल छा जाते हैं और हमारी परिस्थितियाँ बद से बदतर हो जाती है, सतगुरु हमारे साथ होता है। सतगुरु इसी इंतज़ार में रहता है कि जिस भृम में हम जी रहे हैं, उसका ज्ञान हमें कब होगा।
"सतगुरु केवल सत्संगी के जीवन-काल में ही उसका मार्गदर्शन और सहायता नही करता, बल्कि सत्संगी की मौत के समय और मौत के बाद भी उसके साथ रहता है।"
देहधारी सतगुरु हमें परम सत्य के साथ जोड़नेवाली कड़ी है। इसी लिए बाबाजी कहते हैं कि हमें संतमत के हर पहलू पर पूरी सावधानी के साथ विचार कर लेना चाहिए। बाबाजी बार-बार इस बात पर बल देते हैं कि सबसे पहले यह जान लेना जरूरी है कि क्या हमने संतमत के उपदेश को समझ लिया है,और क्या यह उपदेश तर्कसंगत तथा सच्चा है? यदि हम ऐसा नही करते तो हम इस उपदेश पर खरे नही उतर सकेंगे और न ही सतगुरु पर पूरी तरह से विशवास कर पाएँगे। सभी शंकाओं का समाधान हो जाने पर हमें पूरा भरोसा हो जाएगा कि हम सतगुरु के मार्गदर्शन में सही मार्ग पर हैं। पूरा विशवास होने पर हमें अपना भजन सुमिरन हमें धीरज और संतुलन प्रदान करता है जो हमारी रूहानी उन्नति में सहायक है।
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