Friday 4 October 2019

071 - एक रूहानी आत्मा का अंदरूनी सफर कैसा होता है ?





रुहानी आत्मा का सफर एक सतसगी ने अपने सतगुरु को पत्र भेजकर सांझा किया . वैसे तो आंतरिक अनुभव हमेशा निजी होते हैं परंतु भजन और सिमरन को प्रोत्साहित करने के लिए यह पत्र हम सत्संगिओ के लिए एक
सच्चे संत ने उपलब्ध करवाया.

प्रिय सतगुरु जी पिछले महीने आपके दर्शन के बाद मेरा मन भजन सिमरन में बहुत लगने लगा . मेरा ध्यान भजन सिमरन में ऊपर की ओर जाने लगा. पिछले 1 सप्ताह से ध्यान बहुत तेजी से लगता गया और 1 दिन तो ऐसा हुआ कि मैं कोई सीमा रेखा को पार करने वाला था.  उसी समय मेरे सामने एक भयानक दिखने वाली काल की तस्वीर सामने गई.  मैं बहुत डर गया मेरा सिमरन भी बंद हो गया.  मुझे नाम सिमरन की याद भी नहीं रही.

 तभी मैंने सतगुरु से अपील की कि मुझे काल से बचाव. सतगुरु प्रकट हुए और काल गायब हो गया.  इसके बाद मेरा मन फिर सिमरन में लग गया और ध्यान अंदर की ओर खींचता चला गया.  मुझे अंदर से ऐसी आवाजें रही थी जैसे कि हजारों हवाई जहाजों की गर्जना हो.  मैं इस आवाज की तरफ खींचा जा रहा था.  मैं सतगुरु के नेतृत्व में आगे बढ़ता गया.  थोड़ी देर आगे बढ़ने के बाद सतगुरु ने मुझे नीचे देखने को कहा.  सतगुरु ने कहा कि अब देखो दुनिया कैसी चल रही है काल दुनिया को कैसे चला रहा है परलय और महाप्रलय कैसे आती है.

इसके बाद हमने एक नए क्षेत्र में प्रवेश किया . इस क्षेत्र में अंधेरा था और कभी-कभी रोशनी आती थी.  सतगुरु के साथ में अंदर की ओर बढ़ता चला गया और आखिर में सब कुछ चमकता हुआ ही दिखाई दे रहा था.  इस नए क्षेत्र में सब कुछ माथे के ऊपर से ही दिख रहा था.  माथे से नीचे कुछ भी नजर नहीं रहा था.  मैंने एक विशाल महल सोने-चांदी हीरो से भरा हुआ देखा.  मैंने एक बहुत ज्यादा सुंदर और मनमोहक व्यक्ति देखा जो संगीत बजा रहा था.  यह करामति संगीत मुझे अपनी तरफ खींच रहा था. तभी मैंने सतगुरु के एक विशाल रूप के साथ जबरदस्त रोशनी दिखाई दी मैंने यह महसूस किया कि सब कुछ यही है.

यहां मैंने एक अद्भुत नजारा देखा कि सतगुरु कैसे सभी सत्संगीयों की संभाल कर रहे हैं. ऐसे लग रहा था कि हर एक सत्संगी को तार से जोड़ कर रखा है.  जब जिसे चाहे उसे ऊपर की ओर खींच लेते हैं और ऊपर के क्षेत्रों के दर्शन करा देते हैं.  मैंने यह भी देखा कि सतगुरु मेरे परिवार की कैसे रक्षा कर रहे हैं.  मैंने संख ध्वनि को सुना और कई प्रकार के संख बज रहे थे .

यहां पर सतगुरु ने मेरी परीक्षा लेनी चाही. सतगुरु ने कहा कि यह सब आपका हो सकता है क्या आप लेना चाहोगे ? मैंने सतगुरु को बताया कि मेरी इच्छा सतगुरु शरण की है. मुझे कुछ और नहीं चाहिए.  सतगुरु ने यह भी बताया कि यदि आप यह सब स्वीकार करते तो इसके बदले में आपको अपना जमा किया हुआ सारा भजन सिमरन और सेवा देनी पड़ती.  मैंने फिर सतगुरु से कहा कि मेरा सब कुछ सतगुरु है इसके अलावा और कुछ नहीं.

अगले ही पल में बहुत कमजोर महसूस कर रहा था . आराम करते हुए मैंने भजन सिमरन करना शुरू कर दिया. तभी मैंने आंखें खोली और मैंने अपने आप को सतगुरु के सामने पाया.  मैं अपनी खुली आंखों से सतगुरु का रूहानी रूप देख सकता था.  सतगुरु का रूप लाखों-करोड़ों सूरज की रोशनी से ज्यादा चमक रहा था.

 पिछले कई दिनों से मैं बेचैन था और सिमरन में अंदर की ओर कुछ देखना चाहता था और आज सतगुरु ने दया करके बाहर और अंदर के नजारे दिखा दिए . मैं इतना ज्यादा संतुष्ट और खुश कभी नहीं हुआ.

अध्यात्मिक अनुभव होने के बाद सतगुरु ने मुझे हर एक अंदरूनी क्षेत्र के बारे में बताया और दिखाया.  मुझे यह भी दिखाया कि मनुष्य जीवन और मरण कैसे काम करते हैं . सद्गुरु की दया मेहर से मैंने सतगुरु का रूहानी और सांसारिक रूप देखा.  मैंने शरीर के ऊपरी हिस्से में एक चमत्कारी और सुख भरी लाइट आती देखी.

 आखिर में मैंने एक जाली जैसी दीवार देखी और दीवार के उस पार विशाल रोशनी का भरमार था.  जब मैं दीवार को पार करके रोशनी का भाग बन गया तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा.  फिर सतगुरु ने बताया कि मैं अभी इतना ज्यादा अध्यात्मिक रूप से मजबूत नहीं हूं इसलिए अभी इन रूहानी क्षेत्रों में जाने की आज्ञा नहीं है .

यह कहने के बाद सतगुरु के दर्शन बंद हो गए और मैं वापस ससारी  दुनिया में गया. मुझे यह अभ्यास हुआ कि सतगुरु से ज्यादा कीमती कोई चीज नहीं है इस संसार में.  आजकल मैं हर रोज भजन  सिमरन करने की कोशिश करता हूं कभी सतगुरु के दर्शन होते हैं और कभी नहीं . अब मुझे सांसारिक धन और मान की कोई चिंता नहीं . सतगुरु दर्शन की अभिलाषा करते हुए यह पत्र में यहीं खत्म करता हूं .

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