"कर नैनों दीदार महल में प्यारा है."
इस शब्द के द्वारा कबीर साहब नें अन्दर का भेद जितना खोला है उतना किसी भी संत ने नहीं खोला. इस पर सतसंग करते हुये महIराज सावन सिंह जी फर्माते हैं -
- ये जो शरीर है रुह या आत्मा के रहनें का महल है. फिर कहते हैं कि इश्वर, परमेश्वर, ब्रह्म, पारब्रह्म खुद खुदा भी इसके अन्दर है.
- बाहर न किसी को मिला है न ही मिलेगा. बाहर क्या है - कागज, पत्थर और पानी. तीर्थों पर पानी है, मूर्तियाँ पत्थर से बनी हुयी हैं. किताबें कागज की हैं और तो कुछ नहीं.
- लेकिन जो ग्रन्थ पोथियाँ वेदशास्त्र है वे सब नाम की महिमा कहते हैं. किताबों में नाम की महिमा है. उसमें नाम या परमात्मा खुद नहीं वो तुम्हारे अन्दर है. वो जब भी मिलेगा अपनें अन्दर ही मिलेगा बाहर नहीं.
- सबसे पहले काम छोड़ दो क्योंकि कामी पुरुष अन्दर नहीं जा सकता है. काम और नाम की दुश्मनी है जिस हृदय में काम है वहाँ नाम असर नहीं करता है नाम हमें ऊंचे रुहानी मंडलों में ले जाता है जबकि काम में रुह नीचे गिरती है.
- क्रोध में रुह फैलती है. हमें रुह को समेंट कर उपर ले जाना है. इसलिए क्रोध भी छोड़ दो.
- अगर अहंकार है तो भी रुह अन्दर नहीं जा सकती है . इसी तरह लोभ और मोह भी छोड़ दो क्योंकि ये भी रुह को अन्दर जानें में रुकावट डालते हैं.
- फिर क्या करो काम की जगह शील से काम लो,
क्रोध के बदले क्षमा से काम लो,
लोभ के बदले संतोष और
मोह के बदले विवेक से काम लेना शुरु कर दो.
इसी तरह अहंकार के बदले दीनता अपना लो
जो सहायक शक्तियाँ हैं उनको ले लो और जो विरोधी शक्तियाँ हैं उनको छोड़ दो.
- कहते हैं शराब छोड़ दो, मांस छोड़ दो, झूठ बोलना छोड़ दो. कहते हैं कि इन तीनों को छोड़ कर फिर अन्दर जाओ अगर इन तीनों में से एक भी चीज है तो रुह अन्दर नहीं जा सकती है.
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