Monday 22 October 2018

037 - आदमी को उस्ताद की क्यों जरूरत होती है ?

 

अंतर में सतगुरु से संपर्क बना रहने पर ही नाम का प्यार जाग्रत होता है। दुनियादारों की संगति से हमारी सुरत फिर इंद्रियों में आ गिरती है। इसलिए गुरु की संगति या सत्संग परम् आवश्यक है। गुरु के प्यार से हमें जगत का मोह छोड़ने और अंदर जाने की शक्त्ति प्राप्त होती है।

Friday 5 October 2018

036 - ईश्वर की बंदगी में सबर का क्या महतव है ?


बहुत समय पहले की बात है, एक संत हुआ करते थे । उनकी इबादत या भक्ति इस कदर थीं कि वो अपनी धुन में इतने मस्त हो जाते थे की उनको कुछ होश नहीं रहता था । उनकी अदा और चाल इतनी मस्तानी हो जाती थीं । वो जहाँ जाते , देखने वालों की भीड़ लग जाती थी।

Saturday 22 September 2018

035 - हमारा ध्यान सिमरन में क्यों नहीं लगता ?



हम सत्संगों में और संत महात्माओं के मुखाग्र से सुनते आते हैं, कि चलते-फिरते उठते-बैठते अपनी लिव नाम के सिमरन के साथ जोड़ के रखो


बहन या माँ किचन में हो या घर का काम काज करते हुए सिमरन करे। भाई दुकान या ऑफिस में भी अपने ख्याल को सिमरन के साथ जोड़ के रखें। लेकिन संत महात्मा ये भी कहते हैं कि ऐसे नाम का सिमरन

Wednesday 5 September 2018

034 - असली सत्संगी कोन है ?


हम सब यहॉ अपने पुराने कर्मों की वजह से ही इकठे हुए हैं. हर किसी का किसी से कुछ लेनदेन है.
अगर कोई हमें दुख देता है तो वो भी हमसे हमारे पिछले कर्मों का हिसाब ही ले रहा है. और ये तो बहुत अच्छी बात है कि हम अपना हिसाब इसी जन्म में ही पूरा करके चुका दें ताकि दुबारा हमें न आना पड़े.

Monday 13 August 2018

033 - सुकरात को रूहानी ज्ञान कैसे हुआ ?



सुकरात समुन्द्र तट पर टहल रहे थे| उनकी नजर तट पर खड़े एक रोते बच्चे पर पड़ी | 

वो उसके पास गए और प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछा , -''तुम क्यों रो रहे हो?''

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