महात्मा बुद्ध की एक कहानी है । वह अपनी यात्रा के दौरान एक जगह आकर रुके। तब एक व्यक्ति उनपर आकर थूकता है तो वो उस व्यक्ति से कहते और कुछ या समाप्त ? तो व्यक्ति हैरान होता उसे उमीद थी के बुद्ध चिलायेंगे क्रोधित होंगे मगर ऐसा नही हुआ और व्यक्ति क्षमा मांग कर और समाप्त कह कर आगे बढ़
तो महात्मा बुद्ध ने बताया के मैं उसी का इन्तेजार कर रहा था। यह पिछले जन्म का लेन देन का बंधन था जो आज इस जन्म में समाप्त हुआ।अब मैं अगर उसपर क्रोध करता तो यह लेन देन का बंधन मुझे बांध लेता ओर मुझे मजबूरी में अगला जन्म लेना पड़ता। अगला जन्म ना लेना पढ़े इसीलिए मैंने पूछा और कुछ या समाप्त?
ओर उसके समाप्त कहने से यह बंधन यह कर्ज भी समाप्त हो गया।और इस स्थान पर आने और रुकने का प्रयोजन भी सिद्ध हुआ। तो इस कहानी से यही समझ आता है कि एक व्यक्ति अनेको जन्म लेता है।
दूसरा उसके कर्म बंधन उसे बांधते है।
तीसरा कर्म बंधन ही इस जन्म में सुख दुख की अवस्था निर्माण करते है।
चौथा आप साक्षी भाव मे रहकर पुराने बंधन को सुख दुख को काट सकते है।
पांचवा साधना से आपको अपने अगले पिछले जन्म बंधनो का कर्मो का ज्ञान हासिल हो जाता है जिससे आपको पता रहता आपके जीवन मे कोई सुघटना या दुर्घटना किऊँ घटी।
इससे यह भी है कि सुख दुख जाने अनजाने हमारे कर्म बंधन ही है। अतः हमें उनके प्रति साक्षी भाव रखना होगा तभी मुक्ति हासिल होगी। आप इसे पिछले जन्म के पाप कहें या पुण्य या इस जन्म का जीवन है तो यह कर्म बंधन ही। लेकिन एक बात समझनी जो जरूरी है वो यह के हमे बेशक ना अपने बीते हुए जन्मों का पता ना आने वाले जन्मों के लिए हमने कब कैसे ओर कौन से कारण व बंधन निर्माण कर लिए। लेकिन मुक्ति के लिए सुख दुख से छूटने के लिए साक्षी सम भाव रखना ही एक मात्र उपाय है। महात्मा बुद्ध भी यही कहते है और श्री मद्भागवत गीता में श्री कृष्ण भी यही सिखाते है।
उपाय अपने सुख दुख में समभाव इस वाक्य को दोहराकर लाएं।
अपने विचारों में,अपनी सोच में यह कहकर परिवर्तन कीजिये कि
यह कर्म बंधन समाप्त हो रहा है। यह अपने आप हो जाएगा। अब मुझे आगे क्या करना है ?
बस इतनी सी सोच ही आपके जीवन में बोहत बड़ा परिवर्तन लाएगी। याद रखें हो सकता आपके आस पास का माहौल ना बदले। आपके आसपास के लोग या उनका व्यवहार आपके लिए ना बदले लेकिन यदि आपने अपनी मानसिक स्थिति बदल ली तो कम से कम निश्चित ही आपका जीवन जरूर बदल जायेगा। आप दुखों का सामना करना अवश्य सिख जाएंगे।
No comments:
Post a Comment