Friday 31 July 2020

106 - साधु के संगति का असर क्या होता है ?

एक चोर राजमहल में चोरी करने गया, उसने राजा-रानी की बातें सुनी । राजा रानी से कह रहे थे कि गंगा तट पर बहुत साधु ठहरे हैं, उनमें से किसी एक को चुनकर अपनी कन्या का विवाह कर देंगें । यह सुनकर चोर साधु का रुप धारण
कर गंगा तट पर जा बैठा । दूसरे दिन जब राजा के अधिकारी एक-एक करके सभी साधुओं से विनती करने लगे तब सभी ने विवाह` करना अस्वीकार किया । जब चोर के पास आकर अधिकारियों ने निवेदन किया तब उसने हां ना कुछ भी नहीं कहा । राजा के पास जाकर अधिकारियों ने कहा कि सभी ने मना किया, परंतु एक साधु लगता है, मान जाएंगे । 
राजा स्वयं जाकर साधुवेषधारी चोर के पास हाथ जोडकर खडे हो गये एवं विनती करने लगे । चोर के मन में विचार आया कि मात्र साधु का वेष धारण करने से राजा मेंरे सामने हाथ जोडकर खडा है; तो यदि मैं सचमुच साधु बन गया, तो संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं, जो मेरे लिए अप्राप्त होगी । 

उसने विवाह के प्रस्ताव को अमान्य कर दिया एवं सच्चे अर्थ में साधु बन गया। उसने कभी भी विवाह नहीं किया एवं साधना कर संतपद प्राप्त किया । मात्र कुछ समय के लिए साधुओं के जमावडे में बैठने का प्रभाव इतना हो सकता है, तो सत्संग का प्रभाव कितना होगा ।

ऐक घड़ी आधो घड़ी , आधो हुं सो आध
कबीर संगति साधु की, कटै कोटि अपराध।

एक क्षण,आध क्षण, आधे का भी आधा क्षण के लिये यदि साधु संतों की संगति की जाये तो हमारे करोड़ों अपराध पाप नाश हो जाते है।

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