Saturday 3 August 2019

064 - सत्संगी के पांच गोल्डन रूल्स क्या है ?




Rule -1 सिमरन तो करना ही पड़ेगा

एक बार बाबा सावन सिंह जी महाराज से एक सत्संगी ने पूछा कि हुज़ूर! आप अपने सत्संग में भजन सिमरन पर ही इतना जोर क्यों देते हैं? जबकि आप अच्छी तरह से जानते हैं कि हमसे भजन सिमरन नहीं होता। 
तो हज़ूर ने फ़रमाया,”मैं अच्छी तरह से जानता हूँ इसीलिए तो बार बार कहता हूँ कि भजन सिमरन करो।" इसी जन्म में कम से कम आँखों तक सिमटाव तो करो ताकि अंत समय तुम्हें ले जाने में मुझे ख़ुशी महसूस हो।

अंत समय जो सिमटाव की तकलीफ़ जीव को होती है वह असहनीय है और संतो से अपने जीव की वह तकलीफ़ देखी नहीं जाती। मैं नहीं चाहता कि आप लोग ऐसी तकलीफ में चोला छोड़ें। इसलिए जितना ज्यादा हो सके सेवा के साथ साथ अभ्यास में ज़रूर वक़्त दें। 
फिर फ़रमाया कि बाहरी सेवा भी जरूरी है पर उसको ही सब कुछ मान लेना हमारी सबसे बड़ी भूल है। भजन सिमरन के प्रति की गयी लापरवाही कभी माफ़ नहीं की जा सकती।

जब कोई सत्संगी संतमत के उसूलो पर चलता है और भजन सिमरन को पूरा वक्त देता है , तो दुनिया की कोई ताकत उसे नीचे नहीं खींच सकती  और  उसे इस दुनिया में वापस नहीं ला सकती.
इसलिए इस दुनिया से छुटकारा पाना है तो भजन सिमरन करना ही पड़ेगा.


2.  माफ़ करना और सांत रहना सीखिए

इंसान गलतियो का पुतला है, जाने अनजाने कितनी गलतियां करता रहता है। एक इंसान होने के नाते हम सभी का फर्ज बनता है कि दूसरे की गलतीयो को नजर अंदाज करे और अगर कोई अपनी गलती स्वीकार करता और क्षमा मांगता है तो तुरन्त उसे क्षमा कर दे।

वैसे हम सभी के अंदर एक बहुत बुरी आदत है हमे जब अपनी गलती का अहसास होता है तो हमे लगता है कि दूसरा इंसान तो हमसे छोटा है, इससे क्या माफी मांगना। इंसान छोटा बडा अपनी मेहनत, भाग्य और कर्मो के फल अनुसार होता है। 
एक बार बिल्कुल शांत होकर ये सोचना कि सुबह से शाम तक जाने अनजाने में हम कितनी गलतियाँ करते हैं लेकिन उसके बावजूद भी परमात्मा हमे बिना माफी के भी क्षमा कर देते हैं। तो हम इंसान इतने निर्दयी क्यों होते हैं? किसी को माफ भी नहीं कर सकते।
जिन्दगी में कभी भी कोई इंसान क्षमा मांगे तो भूलकर भी उसे नजरअंदाज मत करना क्योंकि किसी की गलतियों को क्षमा करके उसको गले से लगाना ही इंसानियत है।


3. हमे किसी इंसान और  मजहब से नफरत नहीं करनी चाहिए

कोई मजहब नफरत की शिक्षा नहीं देता। हर मजहब इंसानियत का पैगाम देता है। हमें ईश्वर का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उसने हमें इंसान बनाया। नहीं तो, वह हमें जानवर भी बना सकता था। ईश्वर ने हमें इंसान बनाया, ताकि हम नेक काम करें। उसने इंसान बनाने के साथ ही हमें जिम्मेदारियां भी दी हैं। इंसान होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने आस-पास रहने वाले लोगों की मदद करें,उनका खयाल रखें, कि उनका खून बहाएं।

4. दुसरो में गुण देखने चाहिए

जो जैसा देखना चाहता है उसे दुनियां वैसी ही दिखायी देती है !  अगर हम अच्छाई देखना चाहें तो हमे अच्छे लोग मिल जायेंगे और अगर हम बुराई देखना चाहें तो हमे बुरे लोग ही मिलेंगे। सब देखने के नजरिये पर निर्भर करता है।
हरेक इंसान के अंदर कोई न कोई अच्छाई होती है। इसलिए हमे अवगुणो को नजर अंदाज करके गुणों को देखना चाहिए।

5. किसी की निंदा और बुराई करना मालिक की निंदा करना है

हमारे घर के अंदर अगर मकड़ी का जाला लग जाता है तो हम उसे झाड़ू से साफ करते है। वह जाला झाड़ू पर चिपक जाता है और हमारे घर की साफ सफाई हो जाती है।
ठीक इसी तरह हम किसी की बुराई करते हैं या निंदा करते हैं तो समझो हम झाड़ू का काम कर रहे हैं। उसकी बुराई अपने सिर पर ले लेते हैं। जिस तरह झाड़ू पर जाला चिपकता है उसी तरह सामने वाले के अवगुणों के पाप हमारे ऊपर चिपक जाते हैं। इसलिए सभी संतों ने कहा है किसी की बुराई मत करो

किसी की बुराई करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि हममें तो कोई बुराई नहीं है। यदि हो तो पहले उसे दूर करना चाहिए। दूसरों की निंदा करने में जितना समय व्यर्थ बर्बाद करते हैं, उतना समय चिंतन में या ध्यान में लगाना चाहिए।
इसलिए सभी संतों ने कहा है  की किसी की निंदा और बुराई करना मालिक की निंदा करना है.

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