Thursday 21 February 2019

050 - एक सचे सत्संगी के सामने राजा को क्यों झुँकना पड़ा ?


गुरु अर्जुन साहेब जी महाराज का एक सिख था. जिसका नाम था भाई माधो दास. भाई माधो दास लाहौर में रहते थे और बड़े सत्संगी थे. सतसंगत से इन्हें इतना प्रेम था कि ये सतसंग की कहीं भी सूचना मिले तो ये सब
काम धंधा छोड़ सत्संग करने चले जाते थे.

घर के बाकी जन उनके इस जीवन से बहुत परेशान थे वो अक्सर उन्हें निक्कमा, निठल्ला,आवारा आदि ताने मारा करते थे, पर भाई माधो दास इन सब से बेपरवाह सत्संग प्रेम में आकंठ डूबे थे.
लाहौर में बढ़ती चोरियों से परेशान हो, लाहौर के नवाब ने मुनादी करवा दी, रात के एक निश्चित समय (रात 10 बजे) के बाद अगर कोई नगर में बिना किसी कारण घूमता पाया गया, और सिपाहियो द्वारा पकड़े जाने पर अगर उसका कोई जमानती ना बना या मिला तो उसे बिना कोई सुनवाई, चोर मान कर सूली पर चढ़ा दिया जाएगा.


मृत्यु का भय, सारे नगर वाले अब रात्रि से पहले ही अपने घर में वापिस आ कर बैठ जाते, एक दिन सत्संग की सूचना मिली दूसरे नगर में था, भाई माधो दास तो चल पड़े, सत्संग से लौटते बहुत देर हो गई, रात को घर पहुचने का निश्चित समय तो कब का बीत चुका था, सिपाहियों ने पकड़ लिया.


पूछने पर घर का पता बताया, घर आ कर सिपाहियों ने दरवाजा खटखटाया, भाई माधोदास को सिपाहियों के हाथों पकड़ा देख कर उनके परिवार के लोग ये सोच कर डर गए कि ये शायद किसी चोर के साथ पकड़ा गया है, और सिपाही इसे घर  ला कर हमें इसका साथी समझ कर पकड़ने आये हैं.

क्या तुम इसे जानते हो ? सिपाही ने पूछा

जी है तो हमारे ही घर का प्राणी लेकिन हमारा इससे कोई वास्ता नही है सारा सारा दिन ना जाने कहाँ कहाँ फिरता रहता है, किन लोगों के साथ रहता है,

सोच लो,तुम्हारा ये कहना इसकी जान जाने का सबब बन सकता है, सिपाही ने कहा


हमारे लिए तो कब का मर चुका है, यहां रह कर भी तो मुफ़्त की रोटियाँ ही तोड़ता है, आप इसे ले जाइए, हमारी जान भखशे, परिवार के लोग चिल्लाए.
अब बिना किसी और सुनवाई और दलील के भाई माधो दास को सूली पर चढाने की तैयारी शुरू हो गई. लकड़ी के इक भारी टुकड़े को पेन्सिल की नोंक की भाँति नुकीला  शूल बनाया गया, अब ये नोंक भाई माधोदास के शरीर में भेद कर उन्हें शहीद करना था.

भाई माधो दास जी ने नेत्र बन्द किये, और गुरु अर्जुन साहेब महाराज के चरणों में अरदास की.


हे दाता, आप जानते हैं ये लोग अंजान हैं और ये मुझे बिना किसी अपराध के शहीद कर रहे हैं, हे दयाल सतगुरु,,दया करें, अगर जीवन का अंत इसी तरह होना है तो ऐसा ही सही,जैसी आप की इच्छा,अगर लायक समझे तो मुझे अपने श्री चरणों में निवास बख्शें.


इधर एक सूखे पेड़ पर भाई माधो दास को बाँध कर जैसे ही शूल उनके शरीर पर सिपाही प्रहार करने लगे, तो क्या देखते हैं  - वो सारा का सारा सूखा वृक्ष एक घना छायादार और फलदार वृक्ष बन गया, वो शूल की नोंक फूलो के एक गुलदस्ते सी बन गई.

सिपाही भागे भागे आए और नवाब को सारी बात बताई, नवाब समझ गया कि ये किसी फकीर को अकारण ही मृत्यु देने वाले थे वो आया और भाई माधो दास जी के चरणों पर शीश झुका कर बोला - ए खुदा के बन्दे, हमें माफ़ कर दे, हम से बहुत बड़ा गुनाह हो जाता, जिस कानून के कारण आप जैसे नेक इंसा की मृत्यु हो जाती वो कानून हम अभी बर्खास्त करते हैं, लेकिन मैं आप से एक बात पूछना चाहता हूँ मृत्यु को इतना निकट जान कर भी आप को जरा भी भय नही लगा.


भाई माधो दास जी ने कहा - 
नवाब साहेब, जिस मन को मेरे गुरु नानक, अपने चरणों में जोड़ लेते हैं, उस मन में दाता कभी भी भय, दुख, संताप नही आने देते, मेरे गुरु तो अपने सेवकों से इतना प्यार करते हैं कि दुख, पीड़ा तो वो अपने सेवको को सपने में भी नही होने देते, मेरे धन्न गुरु नानक के पंचम रूप धन्न गुरु अर्जुन साहेब जी की ही ये वडियाई देखो, नवाब साहेब, मैं समाजिक रुतबे में आप के सामने चींटी जितना भी नही हूँ, पर मेरे सतगुरु ने आज आप के संग पूरे नगर को मेरे सामने झुका दिया है, मैं अपना बचा जीवन अब उनके सानिध्य में रह कर उनकी सेवा करते हुए ही बिताना चाहता हूँ, ये कह कर भाई माधो दास जी सब संसारिक रिश्तों को छोड़ कर गुरु नगरी अमृतसर साहेब में गुरु अर्जुन साहेब जी के दर्शन करने के लिए विदा हो गए.

जब वह गुरू दरबार पहुचे तो गुरू जी वाणी  उच्चारण कर रहे थे और भगत जी के वृतांत को सुन कर उन्होने लिखा

                                  मेरे माधो जी सत संगत मिले सो तरिया,

                                  गुरपरसाद परमपद पाइया सूके कासट हरिया
अर्थात हे मेरे माधो जी जिसे सत संगत मिली वह तर गया, गुरू कृपा से उसे परमपद मिला और सूखी लकङी (सूली) भी हरी हो गई।

यह दृष्टांत लिख कर उन्होने भक्त और भक्ति के इस वृतांत को अमर कर दिया। धन्न भाई माधो दास, धन्न गुरु अर्जुन साहेब जी महाराज.

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