Saturday 9 February 2019

049 - एक भूले भटके जीव को कबीर जी ने कैसे सही रास्ता दिखाया ?

एक बार बरसात के मौसम मेँ अचानक साधु महात्मा कबीर साहब के घर पर आ गए . बरखा के कारण कबीर साहब दो दिन से कपड़ा बेचने बाजार मेँ नहीँ जा पाए थे. घर मेँ खाने का प्रबंध पूरा नहीँ था.
उंहोन्ने अपनी पत्नी से पूछा क्या कोई दुकानदार खाने का समान हमेँ उधार दे सकता है हम बाद मेँ उधार कपड़ा बेच कर चुका देंगे. पर एक फकीर जुलाई को कौन उधार दे जिसकी कोई पक्की आमदनी नहीँ थी. 

 माता लोही कुछ दुकानदारोँ के पास गई लेकिन हर कोई नकद पैसे मांग रहा था. आख़िर एक बनिया उधार देने के लिए तैयार हो गया लेकिन उसने माता लोही आगे एक शर्त रखी वह एक रात मेरे घर पर आए . यह गंदी शर्त सुनकर माता को बहुत बुरा लगा. लेकिन वह चुप रही जितना सामान चाहिए था बनिए ने दे दिया माता जल्दी से सामान लेकर घर पर आई और खाना बनाया और साधुओं को खिलाया.

 जब खाना खाकर सब साधू चले गए माता ने सारी बात बनिए की कबीर साहब को बताई कि उसने यह शर्त रखी है.  रात हुई तो कबीर साहब ने माता लोही को कहा कि बनिए का कर्ज उतारने का समय आ गया है .

कबीर साहब ने साथ ही कहा घबराने की कोई बात नहीँ मालिक सब भली करेगा. जब माता लोही तैयार हो गई तो कबीर साहब ने कहा बाहर बारिश हो रही है और गली मेँ कीचड़ है तुम अपने ऊपर एक कंबल ओढ़ लो और मैँ तुंहेँ कंधे पर उठा लेता हूँ.  जल्दी ही बनिए के घर पहुंच गए. माता लोही अंदर चली गई और कबीर साहब दरवाजे के बाहर इंतजार करने लगे. बनिया माता लोही को देख कर बहुत खुश हुआ लेकिन उसने देखा बाहर बारिश हो रही है ना ही इसके कपड़े गीले हुए और ना ही इसके पांव पर कीचड़ की सीटेँ हैँ.

 उसने यह बात जब माता लोही को पूछी और माता लोही ने जवाब दिया कि मेरा पति मेरे ऊपर कंबल ओढ़ कर लेकर आया है. और मुझे कंधे पर उठाकर लेकर आया है और मुझे वापिस ले जाने के लिए मेरा बाहर इंतजार कर रहा है.  यह बात जब बनिए ने सुनी तो उसका सर शर्म से झुक गया और माता लोही से उस ने माफी मांगी और घर से बाहर निकल कर कबीर साहब के पैरोँ मेँ गिर गया.  कहने लगा कि मुझे माफ कर दीजिए कबीर साहब ने बड़े शांत स्वभाव से उसे अपने पैरोँ मेँ से उठाया और कहा कि लाखोँ मेँ कोई इंसान होगा जिसने कोई गलती ना की हो.

 कबीर साहिब और माता दोनोँ ही घर वापस आ गए और बनिया सारी रात यही सोचता रहा के परमार्थ का रास्ता ही सही रास्ता है. और सुबह होते ही बानिया ढूंढता ढूंढता कबीर साहिब के घर चला गया और थोड़े ही समय मेँ प्रेमी सत्संगी बन गया.

 भूले भटके जीवोँ को सही रास्ते पर लाने के संतोँ के पास अपने ही निराले तरीके होते हैँ.

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