Sunday 22 August 2021

145 - गुरू के चरणों में अरदास कैसे करते हैं ?

एक गुरू का दास रोज गुरू के द्वार पर जा कर रोज गुरू को पुकारा करता था. लेकिन गुरू के दर्शन नहीं कर पाता था. इसलिए वह हमेशा यही सोच कर चला जाता था कि शायद मेरी भक्ति भाव में कुछ

कमी है. इसलिए वो हर रोज बहुत ही प्रेम भाव से प्रभु के नाम का जाप करता और गुरू के दीदार किये बिना ही चला जाता था बहुत दिनों तक यह चलता रहा .

एक दिन गुरू के दास से रहा नहीं गया उसने गुरू जी से पूछा कि गुरू जी ये आपके दर्शनों के लिए रोज सच्चे मन से आता है और आपको पता भी होता है तो आप इसको अपने दर्शनों से निहाल क्यों नहीं करते. तो गुरू महाराज कहते हैं कि उससे ज्यादा तड़फ मुझे है मिलने की लेकिन जिस प्रेम भाव से वो प्रभु का नाम लेता है मैं छुप कर उसकी अरदास को सुनता रहता हूँ. सिर्फ इसी डर से कहीं मेरे दर्शनों के बाद वो नहीं आया तो ऐसी प्रेम भरी अरदास कौन सुनाएगा. मुझे इसकी अरदास बहुत अच्छी लगती है इसलिए मैं छुप कर सुनता रहता हूँ.
ये जरूरी नहीं कि हम रोज गुरू के चरणों में अरदास करते हैं तो गुरू हमारी सुनते नहीं हो सकता है कि गुरू को हमारी अरदास पसंद हो इसलिए बार बार सुनना चाहते हैं . सतगुरू जी हमारी हर मोड़ पर संभाल करते हैं इसलिए हर हाल में जैसा भी वक्त हो हमें हर पल शुक्रराना करना चाहिए और हमेशा खुश रहना चाहिए ।

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