Monday 19 October 2020

116 - आत्मा और परमात्मा में क्या अंतर है ?

आत्मा और परमात्मा में अंतर जानने से पहले हम उन के मूल स्वरुप को देखे और प्रकति क्या है ।

(1) इश्वर अज्ञात है - अगर हम कोई भी चीज जानते है तो उस का आकार निर्धारित हो जाता है .जिसका आकार है वो न तो निराकार है और न ही अनन्त .

(2) ईश्वर एक है अर्थात निर्विकल्प है - इस श्रष्टि का निर्माण केवल एक ही चीज करती है पर अपने दो अलग -अलग रूपों में शिव (प्रदार्थ ) और शक्ति (ऊर्जा ) आईन्सटीन का सूत्र इस की पुष्टि करता है।
(3) ईश्वर निर्गुण है, जो न न्याय करता है और न ही किसी को दंड देता है .वो कोई भी कर्म नही करता है.

(4) जो निर्गुण तो है पर उस में ज्ञान है, यदि उस में ज्ञान शक्ति न होती तो वो इच्छा ही न करता की मैं एक से अनेक हो जाऊ और हम अपने मूल स्वरुप पाने के लिए प्रयास न कर रहे होते।

बहुत से लोग आत्मा और जीव में अंतर नही जानते और जीव को हो आत्मा समझते है यही कारण है की वे आत्मा को अनन्त और अजन्मा नही मानते है ।

परमात्मा जी ने इच्छा की मैं एक से अनेक होजाऊ .और उन्हों आकाश (तत्व )बनाया .यह तत्व ईश्वर के सबसे निकटवर्ती है. इसी लिए जब यह तत्व शरीर में चल रहा हो तो ध्यान और योग अधिक फलदाई होता है।

फिर उन्हों ने वायु तत्व बनाया .
वायु की घर्षण से अग्नि (तत्व ) प्रकट हुई ।
अग्नि से जल तत्व आया . इस बात को हम वैज्ञानिक प्रयोग द्वारा समझ सकते है।
एक बीकर में हाईड्रोजन ले और दूसरे बीकर में आक्सीजन दोनों को एक नली से जोड़ कर जैसे ही स्पार्क करेंगे हईड्रोजन के दो परमाणु और आक्सीजन का एक परमाणु मिल कर जल का निर्माण कर देते है।
सब से बाद में प्रथ्वी तत्व का निर्माण किया इन तत्वों से श्रष्टि निर्माण करने के बाद भी जो कुछ भी था सब निर्जीव था, अर्थात इतना सब करने के बाद भी वह अकेला ही था ।

फिर उस ने अपने को अंश में विभाजित किया और पाच तत्वों से सूछ्म देह (प्रदार्थ ) बना कर प्रदार्थ से सैयोग किया। इस के बाद इस सूछ्म प्रदार्थ ने स्थूल प्रदार्थ से सैयोग कर के जीवन और म्रत्यु चक्र की सुरुआत की । वह अंश आत्मा के नाम से और वह सुछम देह जीव के नाम से जानी जाती है।
अतः
(1) जिस पर दया ,छमा प्रेम ,घ्रणा आदि गुण प्रतिबिंबित होते है वह आत्मा है।
(2)जो बुद्धि और मन नही है पर उन को संचालित करती है।
(3) जो ज्ञान स्वरुप है।
(4)जिस में ईश्वर के सारे गुण है .क्योंकि वह ईश्वर का अंश है।


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